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________________ शब्दार्थ जी० जीव पु. अपने इ. शीघ्र आ० आने से वह के कैसे भं० भगवन ए. ऐसा बु. कहा जाता है जा० यावत् १. शीघ्र आ० आवे गा० गोतम इ. स्त्री पु० पुरुषका क० किये कर्म जी. योनि में मे० मेथुन सबाध सं० संयोगमें स० उत्पन्न होवे ते. वे दु०, दोनों सि० स्निग्धता चि. इकठी करे त० हा ज० जघन्य ए. एक दोदो ति तीन उ० उत्कृष्ट स० प्रत्येक लक्ष जी. जीव पु. पुत्रपने ह. है इक्कावा, दाश, तिण्णिवा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवाण पुत्तत्ताए हव्वमाग च्छति ॥ सकेणट्रेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाब हव्यमागच्छइ ? गायमा ! इत्थीएय पुरिसस्सयम्मकडाए जोणीए मेहुणवत्तिए नाम संजोए समुप्पजइ, ते दुहओसिणेहं चि णति, तत्थान जहन्नेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसेणं सयसहस्स पुहत्तं जीवाणं भावार्थ गौतम ! अघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट प्रत्येक लाख [नव लाख ] जीव पुत्रपने उत्पन्न होवे. मत्स्यादिक E का एक संयोग मे माछली की योनि में नव लाख जीव गर्भपने उत्पन्न होवे और निष्पन्न भी होवे. मनुष्य को बहुत उत्पनवे परंतु बहत निष्पन्न नहीं होवे. अहो भगवन् ! एक भव में एक ही जीव को नव १० लाख जाव पुत्रपन किस तरह से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम! नाम कर्म निवर्तित (मदनोद्दीपक व्यापारवाली) यानि पस्खा आर पुरुषका मैथुन संबंधी संयोग हुवा, उस समय उन दोनों का स्नेह एकत्रित हुवा. उस 1 में जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट नवलक्ष जीव पुत्रपने उत्पन्न होवे इसलिये अहो गौतम ! नवलाख जीव 4848 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मत्र दूसरा शतक का पांचवा उद्देश MEEN
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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