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शब्दार्थ 4 रहा हुवा के०कितना काल सं०रहे गो गौतम ज० जघन्य अं० अंतर्मुहूर्त उ० उत्कृष्ट वा बारह मुहूर्त॥६॥ए एक.
जी०जीव भं०भगवन ए. एक भव में के किसनेका पु० पुत्र पने ४० शीघ्र आ आवे गोगौतम जमघन्य इ० एक दो० दो ति० तीन उ. उत्कृष्ट सः प्रत्येक सो जी० जीवों का० पु० पुत्रपने ४० शीघ्र
३३२ आ० आवे ॥ ७॥ ए. एक जी० जीव को भं. भगवन् ए. एक भव में के० कितने जीव पु० पुत्रपने ह० शीघ्र आ० आवे गो० गौतम ज. जघन्य इ. एक दो० दो ति तीन उ. उत्कृष्ट स. प्रत्येक लक्ष __ अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस मुहत्ता ॥ ६॥ एग जीवेणं भंते ! एग भवग्गहणेणं "
केवइयाणं पुत्तत्ताए हबमागच्छइ ? गोयमा ! जहण्णणं इक्कस्सवा दोण्हस्सवा, ति___ण्हस्सवा उक्कोस सयपुहत्तस्स जीवाणं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छइ ॥ ७॥ एग जीवरसणं
भते एग भवग्गहणेणं केवइया जीवा. पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! जहन्लेणं भावार्थन्द्रिय तिर्यंच का बीजरूप वीर्य योनि में कितने कालतक रहे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त
उत्कृष्ट बारह मुहूर्त ॥६॥ अहो भगवन् ! एक जीव एक भव आश्रित कितने पिता का पुत्र होवे ? अहो गौतप ! जघन्य एक, दो, तीन का पुत्र होवे, उत्कृष्ट प्रत्येक (नव) सो पिताका पुत्र होवे. क्योंकि बारह मुहूर्त तक योनि सचित रहती है। उस से नत्र सो का बीज योनि में प्रविष्ट होने से उन सब का वह पुत्र कहाता है ॥ ७॥ अहो भगवन् ! एक भव में एक जीव को कितने जीव पुत्रपने उत्पन्न होवे ? अहो ।
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *