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शब्दार्थ |
में उ० उद्योतकरनेवाला पः प्रकाश करनेवाला जा० यावत् प०प्रतिरूप से वह त० तहां अ० अन्यदेव अ० { अन्य देव की दे देवीको अ० वशकर प० परिचारणा करे अ० अपनी दे० देवीको अ० वशकर के १५० परिचारणा करे णो नहीं अ० आत्मा से अ० आत्मा को वि० विकुर्वेकर पं० परिचारणा करे ए० एक जी० जीव ए० एक स० समय में ए० एक वे० वेद वे० वेदे इ० स्त्रीवेद पु० पुरुष वेद जं० जिस समय में इ० स्त्रीवेद वे० वेदे णो० नहीं तं उस समय में पु० पुरुष वेद वे ० वंदे जं० जिससमय में पु० वत्तारो भवंति महिड्डिएसु जाव महाणुभागेमु दूरंगतीमु, खिरद्वितीसु सेणं तत्थ देवे भवइ महिड्डिए जाब दस दिसाओ उज्जीवेमाणे पभासेमाणे जाव पंडिरूवे सेणं तत्थ अदेवे अण्णा देशणं देवीओ अभिजुंजिय अभिजुंजिय परियारेइ, अप्पणिच्चि - याओ देवीओ अभिजुंजिय अभिजुंजिय परियारेइ, नो अप्पणामेव अप्पाणं वेउवियं परियारेइ ! एगेत्रियणं जीवे एगेणं समएणं एवं वेदं वेदेइ तेजहा इत्थिवेदवा, ( यावत् दशों दिशि में प्रकाश करनेवाला, उद्योत करनेवाला यावत् प्रतिरूप हुवा. वह देवता अन्य देव को अथवा अन्य देवता की देवियोंको अपने वश में करके भांगता है या अपनी देवी को आलिंगन कर उस की साथ परिचारणा करता है; परंतु स्वयं स्वतः का शरीरको वैक्रेय बनाकर उस वैक्रेय बनाहुना शरीर से * परिचारणा नहीं करसकता है. इसलिये एक जीव एक समयमै ख्री वेद अथवा पुरुषवेद इन दोनों में से एक ही
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
** प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी **
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