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शब्दार्थ) वन् ए. ऐसा गो० गौतम ज० जो अ० अन्य तीर्थिक ए. ऐसे आ० कहते हैं जा. यावत् इ० स्त्रीवेद
पु० पुरुप वेद जे. जो एक ऐसे आ० कहते हैं मि. मिथ्या ते वे ए० ऐना आ० कहते हैं अ. मैं गो० गौतम ए. ऐसा आ० कहता हूं जा० यावत् प० प्ररूपता हूं नि० निग्रंथ का० काल को प्राप्तहुवे |
अ. अन्यतर दे देवलोक में दे देवपने उ सन्न महावे म०महार्द्धक जायावत् म०महाशक्तिवंत दु०ऊंचे, 45 देवलोक में चि० लंबी स्थिति वाले त० तहां दे० देव भ० होवे म. महर्द्धिक जा० यावत् द. दशदिशा
वत्तवया णेयवा जाव इत्थिनेयंच, पुरिसवेयंच ॥ से कहमेयं भंते एवं ? गो. यमा ! जण्णं ते अण्णउत्थिया एव माइक्खंति जाव इत्थिवेयंच पुरिसवेयंच,
जे ते एव माहंसु मिच्छा ते एवं मासु ॥ अहं पुण गोयमा ! एव माइक्खामि
__ जाव परूवेमि एवं खलु नियंठे कालगए समाणे अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उवभावार्थ तीर्थक एक समय में एक जीव दो वेद वेदने का बोलते हैं वे मिथ्या हैं अर्थातू उन का कथन असत्य
है. क्योंकि देव को स्त्रीरूप करने पर भी पुरुषपना होने से पुरुष वेद का ही उदय होता है परंतु स्त्री वेद ।। का उदय नहीं होता है. अहो गौतम ! मेरा कथन ऐसा ही कि कोई निग्रंथ कालं करके किसी महर्दिक | यावत् महानुभाग बहुत स्थितिबाले उपर के देवलोक में देवतापने उत्पन्न हुवा. वहां पर वह देव महर्दिक,
विवाह पण्णिात्त ( भगवती) सूत्र 4987
दसरा शाम पांचवा उद्देशा 810381