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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
- अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
[निय का०काल कियाहुवा देवदेव हुवे अ स्वतः से बह त तहां नो० नहीं अ० अन्य देव नो नहीं अ० अन्य (दे० देवकी दे० देवीको अ० वशकरके प० परिचारणा करे णो नहीं अ० अपनी दे० देवीको अ० वश कर के प० परिचारणाकरे अ० आत्माको वि० विकुर्वकर प० परिचारणा करे ए० एक जी० जीव ए० एक {स० समय में दो० दोवेद बे० वेदे तं० वह ज० जैसे इ० स्त्रीवेद पु० पुरुष वेद ए० ऐसे अ० अन्यतीर्थिक की व० वक्तव्यता ने० जानना जा० यावत् इ० स्त्रीवेद पु० पुरुषवेद से वह कं० कैसे ए० यह भं० भगदेवभूएणं अप्पाणेणं सेणं तत्थ जो अण्णदेवे नो अण्णेसि देवाणं देवीओ अभिजंजिय अभिजुंजिय परियारेइ णो अप्पणिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय अभिजुंजिय परियारेइ, अप्पणामेव अप्पाणं विउन्विय विउत्रिय परियारेइ; एगेवियणं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदइ तंजहा - इत्थित्रेयंच, पुरिसवेयंच ॥ एवं अण्णउत्थियअधिकार कहते हैं. अहो भगवन् ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत् प्ररूपते हैं कि साधु निग्रंथ यहां से काल कर देव होने पर आत्मा से अन्य देव या अन्य देव की देवियों को आलिंगन कर उन की साथ परिचारणा नहीं करते हैं. वैसे ही अपनी देवी की साथ भी परिचारणा नहीं करते हैं. परंतु स्वतः { के शरीर को वैक्रेय बनाकर उस की साथ परिचारणा करते हैं. इस तरह करने से एक ही जीव एक समय में स्त्री (वेद व पुरुष वेद ऐसे दो वेद वेदता है. अहो भगवन् ! यह किस तरह है ? अहो गौतम : जो अन्य
...शक- राजाबहादुर लाला / सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी