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________________ शब्दार्थ १६० इन्द्रिय उ० उदेशा णे जानना सं० संस्थान चा० जाडपना पो० चौडा मायावत् अ अलोक॥२॥४॥4 ० अ० अन्यतीर्थक भं० भगवम् ए. ऐसा आ० कहते हैं प० विशेष कहते हैं ५० प्ररूपते हैं एक ऐसे 8 सूत्र बिईय सए चउत्थो उद्देसो सम्मत्तो॥ २ ॥ ४ ॥ * * . अण्णउस्थियाणं भंते! एवमाइक्खति,पन्नवेति फवेंति, एवं खलु नियंठे कालगए समाणे भावार्थ इरसनेन्द्रिय की संख्यात गुती व स्पर्शेन्द्रिय की असंख्यात गुनी. चक्षइन्द्रिय अस्पर्य पुद्गल ग्रहण करे शेष रों इन्द्रियों दर के पुद्गलों को स्पर्श कर ग्रहण करते हैं. श्रोतेन्द्रिय का विषय जघन्य अंगुल का असंBख्यात का भाग उत्कृष्ट श्रोतेन्द्रिय का बारह योजन का है, चक्षुइन्द्रिय का उत्कृष्ट साधिक नव योजन} a और शेष इन्द्रियों का नव योजन का विषय है. अगर समुद्घात गत पुद्गल छदस्थ जीव नहीं देख सकता है. इस विषय का विस्तार पन्नाणा के पंदरहवे पद से जानना. यावत् अहो भगवन् ! अलोक को कोनसी काय स्पर्श कर रही है? अहो गौतम : अलोक को धर्मास्तिकायादि एक भी काय स्पर्शकर नहीं रही है परंतु मात्र एक आकाशास्तिकाय स्पर्श कर रही है. यह दूसरे शतकका चौथा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥२॥४॥ + 1. चतुर्य उद्देशे में इन्द्रियों का अधिकार कहा. इन्द्रियों विषयवाली होती है इसलिये परिचारणा का 48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 488 दूसग शतक का पांचवा उद्देशा 8
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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