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प्राषिजी
अमालक
शब्दार्थ हुवे पु० पहिले है. हा गो० मौतम ब. अनेक वक्त अ सा अ० अनंत बक ॥ २॥३॥
क० बितनी भे• भगवन ई० इन्द्रिय ५० प्ररूपी गो गौतम ५० पांच ई० इन्द्रिय प० प्रस्पी १० पहिला
सम्मत्तो ॥ २ ॥ ३ ॥ । कइणं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचइंदिया पण्णत्ता तंजहा-पढमिल्लो इंदिय
उद्देसो यन्वो ॥ संठाणं बाहलं पोहत्तं जाव अलोगो इंदिय उद्देसो उत्पत्र हुवे हैं. यह दूसरा शतकका तीसरा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ १ ॥ ३ ॥ . 5 तीसरे उद्देशे में नरक का अधिकार कहा. नारकी को इन्द्रियों होती हैं इसलिये आगे इन्द्रिय का
अधिकार चलता है. अहो भगवन् !इन्द्रियों कितनी हैं ? अहो गौतम श्रोतेन्द्रिय, चाइन्द्रिय, प्राणेन्द्रिय रसे न्द्रिय व स्पर्शेन्द्रिय ऐसी पांच इन्द्रियों हैं. श्रोतेन्द्रिय का संस्थान कदम्ब वृक्ष का फुल समान, चाइन्द्रिय का चंद्रप ममुरकी दाल समान, घाणेन्द्रिय का अतिमुक्तक चंद्राकार, रसनेन्द्रियं का सर्पलाके आकार और सन्द्रिय का माना प्रकार का संस्थान. श्रोत, चक्ष, प्राण इन तीनों का मापना अंगुल का असंख्यात वे भागका है, रसनेन्द्रिय का पृथक् [ प्रत्येक] अंगुल का जाडपना है, और सझेन्द्रिय का शरीर
अमाप है. पांचों इन्द्रियों अनंत प्रदेश से उत्पन्न हुइ हैं. सब को असंख्यात प्रदेश की आगाहना है. 17 सबसे छोटी चाइन्द्रिय की अवगाहना, श्रोतेन्द्रिय की संख्यात मुनी, घ्राणेन्द्रिय की संख्यात गुनी,
राजाबहादुर ल.ला सुखदेवसहायजी ज्वालापसादगी *
* अनुवादक-बालबार