________________
Sss
सदास रा उ० उद्देशा णे जानना पु० पृथ्वी अ० अवगाहकर कर नि० नरकावाम सं० संस्थान पा०
जाडपना वि० चौडा प० परिधि व० वर्ण ग० गंध फा स्पर्श किं. क्या स० सर्व पा. प्राणी उ० उत्पन्न है बितीओ उद्देसी सो नेयवो ॥ गाहा ॥ पुढवी ओगहित्ता निरयासंठाणमेव
बाहल्लं, विक्खंभ परिक्खेवो, वण्णो गंधोय' फासोय ॥ किं सव्वपाणा उववण्णपुव्वा ?
हंता गोयमा ! असति अदुवा अणंतखुत्तो पुढवी उद्देसो ॥ बीईयसए तइओ उद्देसो ई लाख नरकावास रहे हुने हैं. ऐसे ही सब सातों पृथ्वी का कथन करना. जो आवलिका (पंक्ति) बंध
नरकावास हैं वे वर्तुलाकार, त्र्यंस, चउरंस हैं और दुसरं विविध प्रकार के हैं.. नरक का जाडपना तीन हजार योजनका है नीचे एक हजार योजन का धन है, बीच में एक हजार योजन का मुसिर है, और
पर एक हजार योजन का संकुचित है. नरक का विष्कंभपना. संख्यात योजनवाले नरकावासकासंख्यात योजन का है, और परिधि भी संख्यात योजन की है. जो असंख्यात योजन के हैं उन का विस्तार 400 परिधि असंख्यात योजन की है. नरक के वर्ण, गंधरस व स्पर्श अनिष्ट है इस का सब अधिकार जीवाभिगम सूत्र के नरक नामक द्वितीय उद्देशे में कहा है वैसा जानना. रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख मरकावासे में क्या सक प्राणी उत्पन्न हुवे हैं ? हां गौतम ! उन नरकावासों में सब प्राणी एकबार नहीं परंतु अनेक वार
पंचांग विवाह पण्णति ( भगवती)
mamiwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwimminar
4883 दूसग शतक का तीसरा उद्देशा
mmmmmmmmmmmmit