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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ गये क० कहाँ उ० उत्पन्न हुवे गो० गौतमादि स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर भ० भगवान् ज० गौतम को व● बोले गो० गौतम म० मेरा अ० अंतेवासी खं० खंदक अ० अनगार प० प्रकृति भद्रक जा० यावत् म मेरी अ० आज्ञामिलते स० स्वयं पं० पांच महाव्रत आर आराधकर स० सर्व अ० अब शेष ने० जानना जा० यावत् आ० आलोचकर प० प्रतिक्रमणकर स समाधि को प्राप्त का काल के अवसर में का० काल करके अ० अच्युत दे० ' देवलोक में दे देवने उ० उत्पन्न हुवे त० तहाँ अ० कितनेक दे० देवताकी बा० बावीस सा० सागरोपम की ठि स्थिति प० प्ररूपी खं० खंदक दे० देव समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! मम अंतेवासी खंदए णामं अणगारे पगइभद्दए जाब सेणं मए अब्भणुणाए समाणे सयमेव पंचमहल्वयाई आराहेत्ता तंचैव सव्वं अवसेसयं नेयव्वं जाव आलोइय पडिकंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अच्चुए कप्पे देवत्ताए उबवण्णे. तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं बावसिं सागरोवमाई देवानुप्रिय ! आपका अंतेवासी खंदक अनगार काल कर कहां गये, और कहां उत्पन्न हुवे ? अहो {गौतम ! मेरा अंतेवासी खंदक नामक अनगार मेरी आज्ञा से पांच महाव्रत की आराधना यावत् । ०७ संलेखनादि कर आलोचना प्रतिक्रम सहित काल करके अच्युत देवलोक में देवतापने उत्पन्न हुवे. वहां पर कितनेक देवताओं की बावीस सागरोपम की स्थिति कही. उस में खंदक देवता की भी बावीस सागरोपम की पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र दूसरा शतकका पहिला उद्देशा ३१५
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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