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________________ शब्दार्थ 4 भगवन्त म. महावीर की अं० समीप स० सब पा० प्राणातिपात का ५० प्रत्याख्यान करता हूं जा० । जीवन पर्यंत जा. यावत् मि० मिथ्या दर्शन शल्य का प० प्रत्याख्यान करता हूं स. सब अ० अशन पा०पान खा०खादिम सा स्वादिम च चार प्रकार का आ०आहार का प०प्रत्याख्यान करता हूं जं०जो इ०१ ३१५ यह स० शरीर इ० इंष्ट कं० कान्त पि० प्रिय जा. यावत् फु• स्पर्शा ति० ऐसा क. करके ए. इसे भी च० चडिम उ. उश्वास नि० निश्वास से वो० स्पजता हूं सं० संलेखना की झू० सेवासे झू. सेवित । भ० भक्त पा० पान ५० प्रत्याख्यान कराया हुवा पा० पादोपगम का० काल को अनहीं वांच्छता हुवाई यणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वं पाणाइवायं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए, जाव मिच्छादसणसलं पञ्चक्खामि जावजीवाए, सव्वं असणपाणखाइमसाइमं चउन्विहंपि आहारं पञ्चक्खामि जावज्जीवाए, जं पियं इमं सरीरं इ₹ कंतं पियं जाव फुसंतु त्तिकटु, एयंपिणं चरिमेहिं ऊसासनीसासेहिं वोसिरामि त्तिकटु संलेहणा झूसणा झूसिए भत्तपाण पडियाइक्खिए पाओवगए कालं अणवकंखमाणे विहरइ भावार्थ स्वादिम ऐसे चारों आहार का मैं प्रत्याख्यान करता हूंइष्टकारी, कान्तकारी, और प्रियकारी ऐसा नो मेरा शरीर है उसे जीवन पर्यंत त्यजता हूं. और संलेखना से भक्तपान का प्रत्याख्यान करता 1 हुवा व काल को नहीं बांटता हुवा विचरता हूं ॥ ३३ ॥ उस समय में खंदक अनगारने श्री श्रमण पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 4381 40840884 दूसरा शतक का पहिला उद्देशा 488 388
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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