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शब्दार्थहंत भ० भगवन्त जा. यावत् सं० प्राप्त न० नमस्कार होवे स० श्रमण भ. भगवन्त म० महावीर को
जा. यावत् सं• प्राप्त होने का का० कामी को वं वंदना करता हूं भ• भगवन्त को १० वहां रहे हुने ० यहां रहाहुवा पा० देखो मे० मुझे भ० भगवन्त त० वहां रहेहुवे इ. यहां रहाईवा ए० ऐसा बोले पु० पहिले म० मैंने स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर की अं० समीप स० सब पा० प्राणातिपात प० प्रत्याख्यान जा० जीवन पर्यंत मि० मिथ्यादर्शन शल्य प० प्रत्याख्यान इ० अभी स. श्रमण भ.
भगवओ महावीरस्स जाब संपाविउकामस्स वंदामिणं भगवंतं तत्थगतं इहगओ पासउ मेसे भयवं तत्थगए इहगयंति तिकटु वंदइ णमंसद्ध वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी पुविपि मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए
पञ्चक्खाए जावजीवाए जाव मिच्छादसणसल्ले पच्चक्खाए जावजीवोए इदाणंपि श्रमण भगवंत को वंदना नमस्कार करता हूं. क्यों कि वहां रहे हुवे भी भगवन्त मुझे यहां पर देख सकते में हैं. इस तरह वंदना नमस्कार कर के ऐसा बोले की मैंने जाव जीव तक भगवंत श्री महावीर स्वामी की कपास से पाणातिपात यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का प्रत्याख्यान किया है और फीर भी मैं महावीर स्वा
मा की पास प्राणातिपत यावत् मिथ्यादर्शन शल्यका प्रत्याख्यान करता हूँ. अशन, पान, खादिम व
49 अनुवादकन्यालब्रह्मचारी मानि श्री अमोलक ऋषिजी?
र लाला सुखदेवमहायजी-मालाप्रसादजी,