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शमा
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क्षमा याचकर त तयारूप थे० स्थविर क. कृतयोगी की स० साथ वि० महान् प० पर्वत स० शनैः । चढकर मै० मेघधन स० साक्ष दे० देव समिपात वाली पु. पृथ्वी शिला पटको ५० देखकर उ• ची-1 मीत पा० लघुनीत की भूमि प० देखकर द. दर्भ का सं० संथारा विणकर पु० पूर्वाभिमुख स० पर्यका । सनसे नि० बैठना के करतल ५० परिवाहित द० दश न. नख सि. शिर में आ०१७ भापर्व म०. मस्तक से ० अंजली • करके ए० ऐसा व० बोले न० नमस्कार होवो अ० अरि१ मेहषणसानिगासं देवसमियाय पुढविसिलापश्यं पडिलेहेछ पडिलेहेइत्ता उच्चार
पासवण भूमि पडिलेहेइ पडिलेहेइत्ता. दम्भसंथारयं संथरह संथरइत्ता. पुरत्थाभिमुहे सपलियंकनिसन्ने करयलपरिग्गहिवं दसनहं सिरसावन्तं मत्थए अंजालिं कटु
एवं वयासी नमोत्थुणं अरहंताणं भगवंताणं जाव संपत्ताणं, नमोत्थुणं समणस्स मान श्याम व देव सानपात से राषिक पधी शिलापट देखकर, व वडीनीत लपुनीत की भूमी को देखकर, दर्भ का संवारा विछाकर, पर्यकासम से पूर्वाभिमुल पैकर, दोनों हस्त के दानों को एकत्रित कर, (दोनों हाथ जोडकर) मस्तकको भावर्तना देकर ऐसा बोले की मोसको पास होगये ऐसे अगित यसबने । नमस्कार पावत् मोतकी मासि करने के कापी श्री अमन भात पहारको नमस्कार झेको. मैं यहां रहा हुवा
विषयानि
दूसरा शतकका पहिला उद्देशा
भावार्थ