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भावार्थ
498+ पंचमांग विवाह पण्यत्ति भगवती ) सूत्र
ये ए० ऐसा अ० अध्यवसाय च० चितवन जाः यावत् सः उत्पन्न हुवा ए० ऐसे अ मैं इ० इस ए० ऐसा उ० उदार वि० विपुल जा० यावत् का० काल को अ० नहीं वांच्छते वि० विचरते को ति० ऐसा क० करके ए० ऐसा सं० विचारकरके क० कल प० प्रकट १० प्रभात में जा० यावत् ज० ज्वलंत जे० जहां म० मेरी अ० समीप ते० वहां ह० शीघ्र आ० आया हुवा है. से० अथ णू शकादर्शी खं० खंदक
तत्र खंदया ! पुव्वरत्तावरतं जाव जागरमाणस्स इमेयारूये अन्भत्थिए जाव समुप्पजित्था एवं खलु अहंइमेणं एयारूघेणं उरालेणं विउंलेणं तंचेत्र जाव कालं अणवकखमाणस्स विहरित तिकट्टु, एवं संपेहेइ २ त्ता, कल्लं पाउप्पभायाए जात्र जलते जेणेव ममअंतिए तंगेव हव्वमागए || सेणूणं खंदया ! अट्ठेसमट्टे ? हंताअत्थि.
दूसरा शतकका पहिला उद्देशा
गार को ऐसा बोले की अहो स्कंदक ! मध्य रात्रि में धर्म जागरणा करते तुम को ऐसा अध्यवसाय यावत् संकल्प हुवा कि मेरा शरीर क्षीण होगया है, यात्रत् मेरी सब नाडियों दीखती है, परंतु उत्थानादि { होने से प्रभात में मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक पास जाकर वंदना नमस्कार कर काल की वांच्छा नहीं { करता हुवा संलेखना करना मुझे श्रेय है. और ऐसा विचार करके सूर्य का उदय होते ही तुम मेरी। पास आये हो. अहो खंदक : क्या यह बात सत्य है ? हां, भगवन् ! यह बात सत्य है. अहो देवानु
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