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शब्द हुवे अ० अनंतर पं० प.ण्डुर प० प्रभात में र० रक्त अ० अशोक प. प्रकाश किं० किंशुक मु० शुकमुख
गुं• गुजार्ध रा० रंग स० सदृश क. कमल का आ० ग्रह (दृह) स. नलिनी खंड के. बोधक उ० ७/उदित होते मू० सूर्य स० सहस्र किरणों वाला दि. दिनकर ते० तेजस ज• ज्वलंत स० श्रमण भ०
भगवन्त म० महावीर को अ० आज्ञा देते स० स्वयं ५० पांच म० महाव्रत की आ० आराधना कर स०
साधु स० साध्वी से खा० क्षमा याचकर त० तथारूप थे० स्थविर का कृतयोगी की स० साथ वि० है कमालगर संडबोहए उट्ठियंमि सूरे सहस्सरस्सिामि दिणयरे तेयसा जलंते समणं
‘भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता जाव पज्जुवासेत्ता, समणेणं भगवया महावीरेणं ई अब्भणुण्णाए समाणे सयमेव पंचमहब्बयाणि आराहेत्ता समणाय समणीओय खामेत्ता
तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं साई विपुलं पव्वयं सणियं २ दुरूहित्ता मेहघण संनिगासं, भावार्थ
प्रभात में, रक्त वर्णवाले अशोककी प्रभा समान, किंशुक व शुक मुख व गुंजा के रंग समान, कमल का आगर सो द्रह में कमलों को विकशित करनेवाला व सहस्र किरणवाला दिनकरमणि सूर्य उदय होते 50 श्री श्रमण भगवन्त को वंदना नमस्कार कर श्रमण भगवन्त की आज्ञा से स्वयं पांच व्रत की आराधना करके, गौतम स्वामी प्रमुख सब साधु व चंदन बाला प्रमुख सब साध्वीयों की क्षमा याचकर, तथारूप कृतयोगी स्थविर को साथ लेकर, वडा पर्वत पे शनैः २ चडकर, मेघ समान श्याम व देवताओं का सनिपात
पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र gagita
दूसरा शतक का पहिला उद्देशा