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________________ शब्दाथ ३०६ mM श्री अमोलक ऋषिजी १. अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि मुकाया हुवा स० शब्द सहित ग जाता है स० शब्द सहित चि० खडा रहता है एक ऐसे खं० खंदक १० अनगार स शब्द सहित ग. जाता है स० शब्द सहित चि. बैठता. है उ० पुष्ट त तप से अ014 दुवेल मं० मांस सो० रुधिर से ह० अग्नि समान अ० भस्म में प.छुपाहवा ततपके ते. तेजसे त. तपतेज मा की सी० लक्ष्मी से अ० बहत उ० शोभते चि० रहता है। २८ ते. उसकाल ते. उस समय में रा० राजगृह न० नगर में स० समोसरण जा. यावत् प० परिषदा ५० पीछीगई ॥ २२ ॥ त० तब त• उस दिण्णा सुक्कासमाणी ससइंगच्छइ, ससइंचिट्ठइ, एवामेव खंदए अणगारे ससहंगच्छइ ससदंचिट्ठइ । उवाचिते तवेणं अवचिए मंससोणिएणं हुयासणेवि भासरासि पडिच्छण्णे, तवेणं तेएणं, तवतेय सिरीए अतीव उवसोभेमाणे२ चिट्ठइ ॥ २८ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं रायागहेनयरे समोपरणं जाव परिसा पडिगया॥२९॥ तएणं लकडी से भरा हुवा गाडा, और कोयले से भरा हुवा गाडा है. उस में रही हुई वस्तु सूर्य की ऊष्णता * से जब सुक जाती है और उस समय जब गाडा चलता है तब उस में जैसे कडकडाट शब्द नीकलता है। वैसा ही शब्द खंदक अनगार के रक्त मांस विना के शरीरमें से नीकलता है. खंदक अनगार के शरीर में रक्त मांस नहीं होने पर तपरूप तेज से उनका शरीर भस्म में ढकी हुई अग्नि समान तेजस्वी दीखता है ॥२८॥ उस काल उस समयमें श्री महावीर स्वामीराजगृह नगरमें पधारे और परिषदा वंदन करने को आई और धर्मोपदे । *प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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