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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
4 पंचमांग विवाह पण्णसि ( भवगती ) सूत्र
अस्थि च० चमडा से अः बंधा हुवा कि० कडकडाटभूत कि० कृश घ० नाडीयों की सं० संतती जा० हुइ हो० थी ॥ २७ ॥ जी० जीव से म० जाता है चि० बैठता है भा० भाषा भा० बोलकर गि० ग्लानी पाता है भा० भाषा भा० बोलते गि० ग्लानि पाता है भा० भाषा भा० बोलूंगा गि० ग्लानि पाता है। (से० अथ ज० जैसे क० काष्टका स० गाडा प० पत्र का स० शकट प० पत्र ति० तील मं० भाजन का स० शकट ए० एरंड काष्ट का स० शकट ई० कोयला स० शकट उ० उष्ण दि० दिनको सु० तवोकम्मेणं, सुक्के, लक्खे निम्मंसे अट्ठचम्मावणढे किडिकिडियभूए, किसे, धमाणसंतए • जाए यांचि होत्था ॥ २७ ॥ जीवं जावेणं गच्छइ, जीवं जीवेणं चिट्ठइ, भासं भासित्ता विगिलाइ, भासं भासमाणे गिलाइ भासं भासिस्सामीति गिलाइ । से जहा नामए कटुसगडियाइवा, पत्त गडियाइवा, पत्ततिलभंडगसगडियाइवा, एरंडकटु सगडियाइवा, इंगालसगार्डियाइवा, उन्हे महानुभाग तप कर्म से शुष्क, रूक्ष, मांस बिना का अस्थि व चर्म से बंधाया हुवा, बैठते खडे होते कडकडाट होघे वैसे, कृश, नाडियों की कीलियोंवाला होगया ||२७|| उन का शरीर इतना दुर्बल होगया कि जीव मात्र जीवकी सहायता से जाता है. जीव जीव की सहायता से खड़ा रहता है, भाषा बोलकर ग्लानि होती, भाषा बोलते ग्लानि होती, और भाषा बोलने का विचार आते ग्लानि होती. जैसे कोई काष्ट से भरा हुवा गाब, पलाश पत्र से भरा हुवा गाडा, पत्र सहित तील का भरा हुवा गाडा, मृत्तिका के भाजन से भरा हुवा गाडा, एरंड की
840 दूसरा शतक का पहिला उद्देशा
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