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शब्दाथे
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दिवस में उत्कट आसन मे सू सूर्याभिमुख आरे आताप भू० भूमि में आ• आतापनालेते र० रात्रि कोबी वीरासन से अ० वव रहित त० तीसरा मा. मास में अ० अष्ट अ० अष्ट से च० चौथा ।
मिद चार उपवास से पं० पांचवे मास में बा. पांच उपवास से छ. छठा मास में चो० छ उपबस से सा० सातवा मास में सो. सात उपवास से अ० आठवा मास में अ० आठ उपवास से न० नवमा मास में बी० नव उपवास से द० दसवा मास में बा० दशउपवास से ए. इग्यारह मास में च इग्यारह
आयावणभूमीए आयावेमाणे रत्तिं वीरासणेणं अवाउडेणय, एवं तच मासं अट्ठमं अट्ठमेणं, चउत्थं मासं दसमंदसमेणं, पंचममासं बारसमं बारसमेणें छठें मास चोहसमं चोद्दसमेणं, सत्तमंमासं सोलसमं सोलसमेणं, अट्ठमंमासं अट्ठारसभं अट्ठारसमेणं, नवममासं बीसइमं बीसइमेणं, दसमंमासं बावीसइमं बावीसइमेणं,
एकारसमंमासंचउवीसइमं चंउवीसइमेणं, बारसमं मासं छब्बीसइमं छब्बीसइमेणं,तेरसमं दारे महिने में दो दो उपवास का पारना, तीसरे महिने में तीन तीन उपवास, चौथे मास में चार चार उपवास, पांचवे में पांच पांच, छठे में छ छ उपवास, सातवे में सात सात उपवास, आठवे में आठ आठ उपवास, नववे में नव नव उपवाप्स, दशवे में दश दश उपवास, अग्यारहवे में अग्यारह २ बाहरवे में बारह २ , तेरवे में तेरह२, चौदवे में चौदहर, पंदरहवे में पंदरह २, और सोलहवे मास में सोलहर उपवासका पारणा
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११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि, श्री अमोलक ऋपिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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