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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
त० तपकर्म उ० अंगीकार कर वि० विचरने को अ
यथासुखम् दे० देवानुप्रिय मा० मत प० प्रतिवध करो ।। २५ ।। त० तत्र से वह खं० खंदक अ० अनगार भ० भगवन्त म महावीर से अ० आज्ञामिलते जा० यावत् न० नमस्कार करके गुरु गुणरत्न सं० संवत्सर त ० तपकर्म उ० अंगीकार करके त्रिविचरने लगे तं० वह ज० जैसे प० पहिला माम च० चतुर्थ भक्त से अ० अंतर रहित त० तपकर्म दि० दिवस टा०१७ स्थान उ० उत्कट आसन से सू० सूर्याभिमुख से आ० आतापना भू० भूमिमें आ० आतापनालेते र रात्रि में बी० वीरामन से अ० वस्त्र रहित दो० दुसरा मास में छ० छउ छ० छठ में अ० अंतर रहित दि देवाणुपिया ! मा पडिबंधं ॥ २५ ॥ तणं से खंदए अणगारे समणणं भगम्या महावीरेणं अन् मणुष्णाएसमाणे जाव नमसित्ता गुणरयणं संवच्छरं तवोकम उव संपज्जित्ताणं विहरइ तंजहा - पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं अनिक्खिणं तवोकम्मेणं दिया ठाणुक्कुडुए सूराभिमुहे, आयावणभूमीए अबाउडेणय, दोच्चं मासं छट्ठछट्टेणं अनिक्खित्तेणं, अंगीकार कर विचरुं भगगन्तने फरमाया कि अहो देवानुप्रिय ! जसे तुमको सुख होवे वैसा करो विलम्ब मत करो ||२५|| तत्र खंदक अनगार श्रमण भगवन्त महावीरकी आज्ञालेकर व वंदना नमस्कारकर गुणरत्न नामक संवत्सर तप अंगीकार करके विचरने लगे. उसकी सो इस तरह है. पहिले महिने में एकान्तर उपवास
रति वीरासणेणं
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श्री ठाणुक्कुडुए, सूराभिमुहे,
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40840888 दूसरा शतक का पहिला उद्देशा 90-gog
आयावेमा
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