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शब्दार्थ
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११ अनुबादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी 8%
प.प्रथम स०सात रात्रिदिवप्तकी दोमरी ससात सत्रिदिवसकी त०तीसरी स०सातरात्रिदिवसकी अ० अहो । रात्रिकी ए० एक रा० रात्रि की त० तब से वह खं० खंदक अ० अनगार ए० एकरात्रि भिई भिक्ष प्रतिमा अ० यथासूत्र जा. यावत् आ० आराधकर जे. जहां स. श्रमण भ० गवन्त मई महावीर ते तहां उ० आकर अ० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीरको जा. यावत् न. नमस्कार करके एक ऐसा 40 वोले इ० इच्छता हूं भ० भगवन् तु तुमारी अ० आज्ञामिलते गु० गुणरत्न सं० संवत्सर है सत्तराइंदियं, अहोराइयं, एगराइयं. तएणं से खंदए अणगारे एगराइभिक्खु र
पडिमं अहासत्तं जाव आराहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीर तेणेव उवागच्छड २त्ता.
समणं भगवं महावीरं जाव नमंसित्ता एवं वयासी इच्छामिणं भंते ! तुज्झेहिं अब्भ____णुण्णाए समाणे गुणरयणं संवच्छर तनोकम्मं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए. अहासुहं ग्रहण की. आठवी प्रतिमा में सातदिन तक चौविहार एकान्तर उपवास, * नववी प्रतिमा में सातदिन चौविहार एकान्तर उपवास, दशवी में सातदिन चौविहार एकान्तर उपवास. अग्यारहवी में छठ (बेला), और बारहवी में तीन उपवास का तेला करना व एक रात्रिका श्मशान में कायोत्मर्ग, इस तरह बारह प्रतिमा को सूत्रानुसार यावत् आज्ञानुसार आराधकर श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को वंदना नमस्कारकर कहने में लगे की अहो भगवन् ! आपकी आज्ञा होवे तो गुणरत्न की प्राप्ति कराने वाला गुणरत्न संवत्सर तप से _* आठवी में दंडादि नववी में लगडादि और दशवी में वीरासनादिक आसनों की भिन्नता है.
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*प्रकाश-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ