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शब्दार्थ
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापजी
बाहिर लेश्या वाला नहीं सुअच्छी मनोवृत्ति र रमने वाला दं० दमितेन्द्रिय नि निग्रंथ पा०प्रवचन पु०
आगे का० करके वि. विचरता है ॥ २३ ॥ त० तब स० श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर क• कयंगला हैन नगरी के छ० छत्रपलाश चे० उद्यान से प० किलकर ब० वाहिर ज. अन्यदेश में वि० विचरने लगे ॥ २४ ॥ त० तब खं० खंदक अ० अनगार स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर के त. तथारूप थे० स्थविर की अं० पास सा. मामायिकादि ए. अग्यारह अं० अंग अ. शीखकर जे० जहां स० दिए गुत्तबंभचारी, चाई, लज्जू धन्ने खंतिक्खमे जिइंदिए, सोहिए, आणियाणे, अप्पुस्सुए . अचहिल्लस्से सुसमण्णरए, दंते इणमेवनिग्गंथं पावयणं पुरओ काउं विहरइ ॥ २३ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे कयंगलाओ णयराओ छत्त पलासयाओ चइया
ओ पडिनिक्खमइ २ त्ता, बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥२४॥तएणं से खंदए अणगारे समणस्स भगवओ · महावीरस्स · तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाझ्याई
मार्ग का अज्ञ पुरुष मार्ग का जान पुरुप को आगे करके जाता है वैदी खाक अनगार निग्रंथ प्रवचन का आश्रय लेकर विचरने लगे ॥ २३ ॥ उस समय में श्री श्रमण भगवन्त महावीर कयंगला नगरी के छत्र पलाश नामक उद्यान से नीकलकर बाहिर विचरने लगे ॥ २४ ॥ रत समय में श्री खंदक अनगारने महावीर स्वामी के तथारूप स्थविर की पास से सामायिक आदि छ आवश्यक व आचारंगादि *
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी मालापमाद जी *
भावार्थ