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शब्दार्थ | २० | ॥ २२ ॥ से० वह खं० खंदक क० कात्यायन गोत्रीय अ० अनगार जा० हुवा इ० ईर्यासमिति भा० भाषासमिति ए० एषणा समिति आ० आदान भंड मात्रा निक्षेपन समिति उ० उच्चार प्रश्रवण खेलसिंघाण
काय समिति म० मनगुप्ति व त्याग ल० लज्जा सहित ध० रहित अ प्रार्थना रहित अ
सूत्र
भावार्थ
886 पंचङ्ग हिववपण्णाति ( भगवती ) सूत्र
ज० जल परिस्थापनिक समिति म० मनसमिति व० वचन समिति का वचनगुप्ति का कायगुप्ति गुरु गुप्त गु० गुप्तेन्द्रिय गु० गुप्त ब्रह्मचारी च ० धन खं० क्षमा ख० सहनकरे जि० जितेन्द्रिय सो० मैत्रीभाव अः निदान
तणं से खंदए कच्चायणसगात्ते अणगारे जाए इरिया समिए, भासा समिए, एसणा समिए, आयाण भंडमत्त निक्खेवणा समिए, उच्चारपासवणखेल सिंघाणजल्ल पारिट्ठावणिया समिए, मणसमिए, वयसमिए, कायसमिए, मणगुत्ते, वयगुत्ते, कायगुत्ते, गुत्ते, गुति
मिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान भंडमात्र निक्षेपना समिति, उच्चार प्रश्रवण खेलजल परिस्थापनीय समिति, मन समिति, वचन समिति, काय समिति, मन गुप्ति, वचन गुप्ति व काय गुप्तिवाले, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी, त्यागी, लज्जायुक्त, धर्मरूप धन का संग्रह करनेवाला, क्षान्ति क्षमा के धारक, जितेन्द्रिय, नियाना नहीं करनेवाले, उत्सुकपना रहित, संयम में लेश्यावन्त, श्रामण्य-साधुपना में रत व ( दमितेन्द्रिय कात्यायन गोत्रीय खंदक अनगार जिन प्रवचन को आगे करके विचरने लगे अर्थात् जैसे
4- दूसरा शतकका पहिला उद्देशा