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ब्दार्थ
बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
विशेष इच्छित से वह ज जैसे तु• तुम व कहते हो त्ति ऐसाकरके सश्रमण भ भगवन्त म०महावीरको वं वंदनाकर न० नमस्कार कर उ० ईशान कोन में अ० आकर ति० त्रिदंड कुं० कमंडल जा. यावत्-धा० धातु से रक्त वस्त्र ए. एकान्त में एकरखकर जे. जहां स० श्रमण भ० भगवन्त म. महावीर ते तहां आ० आकर स. श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर को ति तीन वार आ० आदान प० प्रदक्षिणा क० करके जा. यावत् न. नमस्कार कर आ० आदीप्त हुवे लो०लोक प०प्रदीप्त हेव ज जरा म०मरण से ज जैसे के०
मेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियभेयं भंते ! से जहेयं तुज्झे वदहत्तिकटु, समणंभगवं महावीरं वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता, णमंसइत्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसीभायं अवकमइ, अवकमइत्ता तिदंडंच कुंडियंच जाव धाउरत्ताउय एगंते एडे एडेइत्ता जेणेव समणेभगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छइत्ता समणं भगवं
महावीरं तिखुत्तो आदाहिणपयाहिणकरेइ करइत्ता जाव नमसइत्ता एवं वयासी, को वंदना नमस्कार कर के ईशान कोन में गया. वहां जाकर त्रिदंड कमंडल यावत् गेरु से रंगे हुवे वस्त्रों को एकान्त में रखकर श्रमण भगवन्त महावीर की पास आया. वहां आकर महावीर भगवन्त तीन आदान प्रदक्षिणा की. प्रदक्षिणा कर यावत् नमस्कार कर ऐसा बोले की अहो भगवन् ! यह जीवलोक जरा व मरण से मलित बना हुवा है. जैसे कोई गृहपति अपने घर को आग्नि से प्रज्वलित
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*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ
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