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शब्दार्थ
वह ख० खंदक क कात्यायन गोत्रीय संयुद्ध म श्रमण भ भगवन्त म. महावीर को वं. वंदन कर न नमस्कारकर एक ऐसा व वाले इ० इच्छता हूं भं भगवर तु. तुमारी अं० पास के केवली ५० प्ररूपा धर्म को नि० धारने को अ० यथामुख दे. देवानुप्रिय मा० मत ५० प्रतिबंध करो त तब स. श्रमण भ० भगवन्त ५० महावीर वं वंद्रक क कात्यायन गोत्रीय ती उस म. वडीम० महान प.परिषदामें धधर्म प.कहा धधर्म कथा मा कहीर ॥ ततब से वह ख० खंदक क कात्यायन गोत्रीय
सूत्र
19 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एत्थणं से खदए कच्चायण सगाते संबढे ! समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, नमसइत्ता एवं क्याली इच्छामिण न। नन्दा अनि केवली पन्नत्तं धम्म भिसामित्तए. अहासह देवाणपिया मापांडबध ॥ नारण समण भगव महावीर खदयम्स कमायण
सगात्तस्स तीसेयमहद महालियाए परिसाए धम्म परिकहेइ. धम्मकहा भाणियव्वा प्रति बोध पाये और श्री श्रमण भगवन का वंदना नमस्कार कर कहने लगे कि अहो भगवन! आप की E ममीप के पनी प्ररूपिन धर्म सुनने को मैं चाहता है. अहो देवानुधिय : जैसा तुम का सब हो वैमा में
कगे, विलम्ब मत करो. उसमय श्री श्रममा भगवान महावीर स्वामी ने उन महती पम्पिदा में बंदक परिव्राजक को धर्म का नहीं. १॥ नम हर व कात्यायन गोचीर ग्वंटक ने महावीर स्वामी की
* प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुम्बदवमहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ