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________________ शब्दार्थ २८७ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <१880 वह पा० पादोपगमन भ० भक्त प्रत्याख्यान दु० दोप्रकार का नी नीहारिम अ० अनीहारिम नि निश्चय ० स० प्रतिक्रमण भ० भक्त प्रत्याख्यान खं० खंदक दु० दोप्रकार का पं० पंडित मरण से म० मरता जी जीव अ० अनंत ने नारकी भ० भव से अ० आत्मा को वि० पृथक्करे जा. यावत् वी० तीरे इ० इन। खं खंदक दु० दोप्रकार के म० मरण से म० माता, जीव व० वृद्धि पावे हा हानीपावे ॥ २० ॥ से. रिमेय. नियमा अपडिक्कमे. सेत्तं पाओवगमणे । से किं तं भत्तपच्चक्खाणे ? भत्तपचक्खाणे दुविहे प० तं० नीहारिमेय, अनीहारिमेय, नियमा सपडिक्कमे. सेत्तं भत्त पच्चक्खाणे इच्चतणं खदया ! दुविहेणं पंडियमरणेणं मरमाणे जीवे अणंतेहिं नेरइय भवग्गहणेहिं अप्पाणं विसंजोएइ जाव वीयर्यावयइ. सेतं मरमाणे हायइ. सेतं पंडियमरणे ॥ इच्चेएणं खदया ! दुविहेण मरणेणं मरमाणे जीवे वढुइ वा,हायइ वा॥२०॥ नहीं करता है. भक्त प्रत्याख्यान के दो भेद कहे हैं नीहारिम और अनीहारिम. यह प्रतिक्रमण करता है क्यों कि इन को हलन चलनादि क्रिया होती है. इस तरह अहो खंदक! दो प्रकार के पंडित मरण मरने वाला नरक, तिर्यंच, मनुष्य व देव के भव में अनंतवार उत्पन्न नहीं होता है यावत् संसार में परिभ्रमण नहीं करता है. इसतरह मरण मरने वाला संसार का क्षय करता है. अहो खंदक : ऐसे दो मरण मरनेसे जीव संसार की वृद्धि व हानि करता है. ॥ २० ॥ इस तरह उत्तर सुनकर कात्यायन गोत्रीय खंदक परिव्राजको Raghav दूसग शतक का पहिला उद्देशा 8888 भावार्थ 1
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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