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शब्दार्थ
सूत्र
भावाथ
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
दु० दोप्रकार के म० मरण वा वाद मरण १० पंडित मरण किं० कैसे बा० बाल मरण वा बाल मरण दु० बारह प्रकारका कारण इन्द्रिय मरण अंतः शल्यमरणतः तद्भवमरण गिः ० गिरिपडन त तरून ज० जल भवेश ज० अभिप्रवेश वि०वि भक्षण स० शस्त्र से मरना वे फांसी देकर गि० गृद्ध के पृष्ट में प्रवेश करना ० खंदक दुवारह प्रकारका वा बालमरण से म० मरता जी० तरसविणं अयमले एवं खलु खंदया ! मए दुविहे मरणे पण्णत्ते तंजहा - बालमरणेय, पंडियमरणेय । से किं तं बालमरणे ? बालमरणे दुवालसविहे पण्णत्ते तंजहा वलयमरणे, वसहमरणे, अंतोसल्लमरणे, तब्भवमरणे, गिरिपडणे, तरुपडणे, जलप्पवेसे, जलणपत्रे से विसभक्खणे, सत्थोवाडणे, बेहाणसे, गिपिट्ठे । इच्चेएणं खंदया ? दुबालसविहेणं बालमरणेणं मरमाणे जीवे अनंतेहिं नेरइय भवग्गहणेहिं अप्पाणं संजोएइ, तिर्यंच होना सो तद्भव मरण ५ पर्वत से पड़कर मरना सो गिरिपडण मरण ६ वृक्ष से गिरकर मरना सो
तरुपडण मरण ७ पानी में प्रवेश कर मरे सो जलमवेश मरण ८ अग्नि में प्रवेश कर मरना सो जलन प्रवेश मरण ९ विप खाकर मरना सो विष भक्षण मरण १० शस्त्रतं छेदकर मरना ११ वृक्षकी शाखादिक से फांसो खाकर मरना सो वेहानस और १२ गृद्धप्रमुख के मृतक शरीर में प्रवेश कर मरना इस तरह वारह | प्रकार के व अन्य भी बाल मरण से जीव अनंत बार नरक, तिर्यंच, मनुष्य व देव का भव ग्रहण करता।
80 दूसरा शतक का पहिला उद्देशा
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