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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
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48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उसका
मैन
का० काल से सिद्ध सा० सादी अ० अपर्यवसित न० नहीं है पु० फीर मे० उसका अं० अंत भा० भाव से सि० सिद्ध अ० अनंत ना० ज्ञान पर्यन दं० दर्शन पर्यत्र अ० अगुरुलघु पर्यव न० नहीं है से (अं० अंत ॥ १९ ॥ खं० खंदक ए० एतारूप अ० आत्मविषय चि०चितवन जा० यावत् सः उत्पन्न हुवा के० किस म० मरण जी० जीव व० वृद्धि पाये हा० हीनपावे त० उसका अ० यह अर्थ खं० खंदेकम ओणं सिद्धे अनंता णाणपजत्रा अणंता दंसणपजवा, अणंता अगुरुलहुय पज्जव्वा, नपुण से अंते ॥ सेतं दव्वओ सिद्धे सअंते, खेत्तओ सिद्धे सअंते, कालओ सिद्धे अनंते, भावओ सिद्धे अनंते ॥ १९ ॥ जे विय ते खंदया ! इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए जाव समुप्पजित्था केणवा मरणेणं मरमाणे जीवे बड्ढइवा, हायइवा, । ज्ञानपर्यव, दर्शनपर्यक, व अनंत अगुरुलघु पर्यव होने से अंत रहित है. इस तरह सिद्ध द्रव्य ( क्षेत्र से अंत सहित व काल भाव से अंत रहित है ॥ ११ ॥ अहो खंदक ! तुम को ऐसा विचार हुवा कि किस मरण से जीव संसारकी वृद्धि या हानि कर सकता है ? अहो खंदक ! 'मरण दो प्रकार के कहे है बाल मरण व पंडित मरण. उस में से वाल मरण के बारह भेद कहे हैं ? धर्म से भ्रष्ट ( होकर या क्षुधा से चलवलाट करता मरन मरे मो वलय मरण २ इन्द्रियों के वश में पड़कर मरे सो सट्ट मरण ३ अंतःकरण में शल्य रखकर मरे सो अंतःशल्य मरण ४ मनुष्य मरकर मनुष्य होना व
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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