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शब्दार्थ आधी भा०भाव से ज० जैसे लो० लोक का त० तैसे भा० कहना त उस में द्रव्य से सि० सिद्धि स० अतसहित खे० क्षेत्र से स० अतसहित का ० काल से अ० अनंत भा०भाव से अ० अनंत ॥ १८ ॥ जे० जो खं० १५० (खंदक जा० यावत किं० क्या अ० अनंत सिद्ध जा० यावत् द० द्रव्य से ए० एकसिद्ध स० अंतसहित खे० क्षेत्र से सि० सिद्ध अ० असंख्यात प्रदेशात्मक अ० असंख्यात प० प्रदेशावगाहिक अ० है अं० तं लोयस्स तहा भाणियव्वा । तत्थ दव्वओ सिद्धी सअंता, खेत्तंओसिद्धी सअंता, कालओ सिद्धी अनंता भावओ सिद्धी अणंता॥ १८ ॥ जेवियतेखंद्या ! जाव किं अनंते सिद्धे तंचेच जाव दव्वओणं एगे सिद्धे सअंते,खेत्तओणं सिद्धे असंखेज पएसिए, असंखज्जपएसोगाढे, अस्थिपु अंते. कालओणं सिद्धे सादीए अपजवसिए नत्थिपुणसे अंते, भाव ( से अंतरहित है, और भाव से अंनत वर्ण, गंध रस व स्पर्श के पर्यत्र, अनंत संठानादिक अनंत | गुरुलघु व अनंत अगुरुलघु के पर्यव होने से अंत रहित है. इस तरह सिद्ध शिला द्रव्यत्र क्षेत्रसे अंत सहित है, और काल व भाव से अंत रहित है. ॥ १८ ॥ अहो खंदक सिद्ध अंत सहित हैं या अनंत है उस के प्रश्न के उत्तर में सिद्ध के पूर्वोक्त प्रकार के द्रव्यादिचार भेद कहे हैं. द्रव्य से सिद्ध एक होने से अंत सहित है, क्षेत्रसे असंख्यात प्रदेशात्म सिद्ध होने से भी अंत सहित काल से एक सिद्ध आश्री आदि सहित व अंत रहित है इसलिये अनंत और भाव से अनंत
सूत्र
भावार्थ
* पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
दूसरा शतकका पहिला उद्देशा
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