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शब्दार्थ | * {खंदक पु० पृच्छा अं० अंत साहेत सि० सिद्धि अ० अनंत सिद्धि त० उनका अ० यह अ० अर्थ म० मैंने च० चार प्रकार की सि.सिद्धि प० प्ररूपी द० द्रव्य से ए० एकसिद्धि स० अतंसहित खे० क्षेत्र से प पैंतालीस जो० योजन स० लक्ष आ० लंबी वि० चौडी ए० एक जो० योजन क्रोड वा बीयालीस स० (लक्ष ती० तीस स० सहस्र दो० दो उ० इगुणपच्चास जो० योजन स० शत किं० किंचित् वि० विशेषाधिक प० परिधि में प० प्ररूपी अ० है से उसका अं० अंत का काल से सि० सिद्धि न०नहीं क० कदापि न० नहीं अणतासिद्धी, तस्सवियणं अयमट्ठे, मए चउव्विहासिद्धी पं० तं ० दव्वओ खेत्तओ, कालओ, भावओ. दव्वओणं एगासिद्धी, सअंता । खेत्तओणंसिद्धी पणयालीस जोयस सहरसाई आयाम विक्खभेणं, एगाजोयण कोडी बायालीसं सयसहस्साई तीसंच सहस्साइं दोण्णियअ उणापणे जोयणसए किंचिविससाहिए परिक्खवेणं पण्णत्ता, अस्थिपुण अंते, कालओणसिद्धी नकदाइनआसि ॥ भावओय जहा तुम को सिद्ध शिला अंत सहित है या अंत रहित है ऐसा प्रश्न पुछाया उस का भी यह
त्रिद्धशिला चार प्रकार की कही है. द्रव्य से सिद्धशिला एक होने से अंत सहित है, क्षेत्र से सिद्धशिला ४५ लाख योजन की लम्बी व चौडी, वैसेही १४२३०२४९ से कुच्छ अधिक परिधि होने से अंत रहित है. काल से भूत भविष्य व वर्तमान ऐसे तीनों काल में शाश्वत होने
सूत्र
भावार्थ
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08 अनुसंदक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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*प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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