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________________ शब्दार्थ अवगाहिक अ०है मे० उसका अं० अंत का काल से जी० जीव न० नहीं क कदापि नहीं हवा णि नित्य न नहीं हैं मे० उसका अं• अंत भा० भाव से जी. जीव अ० अनंत ना० ज्ञान पर्यव अ० अनंत द० दर्शन पर्यव अ० अनंत च०' चारित्र पर्यव अ. अनंत गु. गुरुलघु पर्यव अ० अनंत अ अगुरुलघु पर्यव न० नहीं है से उसका अं० अंत.द. द्रव्य से जी० जीव स . अंतसहित खे० क्षेत्र से स० अंतसहित का० काल से अ० अनंत भा० भाव से जी० जीव अ० अनंत ॥ १७ ॥ जे. जो खं० नत्थि पुणसे अंते, भावओणं जीवे अणंता णाणपजवा, अणंता दंसण पज्जवा, अणंता चरित्तपजवा, अणंता गुरुय लहुय पजवा, अणंता अगुरुय लहुय पज्जवा, नत्थि पुण से अते । सेत्तं दव्वओ जीवे सअंते, खेत्तओ जीवे सअते, कालओजीवे अणंते, भावओ जीवे अणंते ॥ १७ ॥ जेवियणं तेखंदया पुच्छा अंतासिद्धी, भावार्थ .Eख्यात प्रदेशात्मक है इसलिये अंत सहित है, कालसे जीव पहिले नहीं था वैसा नहीं, नहीं है वैसा नहीं 43 नहीं होगा वैसा नहीं, परंतु अतीत कालमें था, वर्तमान में है और आगामिकमें होगा, वैसे ही वह नित्य, शा-ge श्वत है, इसलिये काल से जीव अंत रहित है. भावसे जीव को अनंत ज्ञान पर्यव, अनंत दर्शन पर्यव, अनंत चारित्र पर्यव, अनंत गुरुलघु पर्यव है, इसलिये जीव अंत रहित है. इस तरह द्रव्यसे जीव अंत सहित है, क्षेत्र से जीव अंत सहित है, काल से व भाव से जीव अंत रहित है ॥ १७ ॥ अहो खंदक ! 4.98 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र दूसरा शतकका पहिला उद्देशा 8 000
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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