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________________ शब्दार्थ २७६ * अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * भावन्त का कल्याण कारी सि. श्रेयकारी ध० धन्य मं. मंगलकारी अ. अलंकार रहित वि. भावन्त षित ल. लक्षण वं. व्यंजन गगणयुक्त सि० श्री जैसे अ० अतीव उ. शोभते चि० रहते हैं॥ १४ ॥१ त० तहां से वह खं० खंदक क० कात्यायन गोत्रिय सश्रमण भ० भगवान् म. महावीर का वि. नित्य भोजी स० शरीर उ० उदार जा. यावत् अ० अतीव उ० शोभता पा० देखकर ह. आनंद तु० तुष्ट चि० चितमें आ० आनंद हुवा पी० प्रीति हुइ ५० उत्कृष्ट सा० अच्छा मन हुवा ह• हर्षयुक्त सियं लक्खण वंजण गुणोववेयं, सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठइ ॥१४॥ तएणं से खंदए कच्चायणसगोत्ते सभणस्स भगवओ महावीरस्स वियदृभोइस्स सरीरयं उरालयं जाव अतीव अतीव उबसोभेमाणं पासइ पासइत्ता हट्टतुटुचित्तमाणंदिए पीइमाणे परमसोमणसिए हरिसवसविसप्पमाणहियए, जेणेव समणे भगवं महावीरे अतिशय शोभावन्त, श्रेयकारी, उपद्रवकारी, वस्त्राभरण रहित होनेपर शोभनिक व लक्षण व्यंजन युक्त था. ॥ १४ ॥ उस समय कात्यायन गोत्रीय स्कंदक परिव्राजक नित्यभोजी श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी का शरीर को अत्यंत शोभनिक यावत् लक्षण व्यंजन युक्त देखकर हृष्ट पुष्ट चित्तवाला हुआ, बहुत संतोषित, हुआ, आनंदित चित्तवाला हुआ, मन में प्रीति उत्पन्न हुई और परम उत्कृष्ट हर्ष उत्पन्न हुआ. इस तरह से * * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी चालामसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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