________________
शब्दार्थ
Rai
२७०
<ig89 पंचगंग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र -889
त तुमारे ५० धर्माचार्य पास की ध० धर्मोपदेशक की पास स० श्रमण भ० भगवान् म० महावीर को वं. वांदे नं० नमस्कार कर जा. यावत् प० पूजे अ. यथासुखम् दे० देवानुपिय मा० मत ५० प्रति बंध क करो त० तब भ० भगवान् गो गोलम खं। खंदक क. कात्यायन गोत्रीय की स. साथ जे. जहां स० श्रमण भ० भगवान् म. महावीर ते० तहां प. निश्चय कीया ग० जाने को ॥ १३ ॥ ते० उस काल ते. उस समय में स० श्रमण ५० भगवान् म. 'महावीर वि. निस भोजी हो. थे त० तब स: श्रमण भ० भगवान् म. महावीर वि० नित्यभोजी का स० शरीर को उ० उदार सिं० शो
धम्मोवदेसयं समणं भगवं महावीरं वंदामो नमसामो जाव पज्जवासामो । अहासहं देवाणुप्पिया ! मापडिबंधंकरेह ॥ तएणं भगवं गोयमे खंदएणं कच्चायणसगोत्तेणं साद जेणेव समणे भगवं महावीरे तेनेव पहारेच्छ गमणाए।॥१३॥तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे वियहाजीयावि होत्था।। तएणं समणस्प्त भगवओ महावीर
स्स वियदृभोइस्स सरीरयं उरालं सिंगारं कल्लाणं सिवं धन्नं मंगलं अणलंकिय विभूवीर स्वामी को वंदना नमस्कार करूं. अहो स्कंदक ! जैसे तुम को सुख होवे वैसे करो, विलम्ब मत करो. तब श्री गौतम स्वामी स्कंदक परिव्राजक को साथ लेकर जहां श्रमण भगवंत महावीर स्वामी थे वहां आये ॥ १३ ॥ उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर नित्यभोजी थे. उन का शरीर है।
दूसरा शतक का पहिला उद्देशा 803808
भावार्थ