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. पंचमगि विवाहपण्णत्ति (भगवती) मूत्र 498
चरिमंते सव्यपदेसुवि समोहया पञ्चत्थिमिल्ले चरिमंते समय खेतेय उववातिए जे . समयखेत्ते समोहया पचच्छिभिल्ले चरिमंते समयखतंय उववाएयब्वा तेणेवगमएणं,' एवं एएणं दाहिणिल्ले चरिमते समयखत्तेय समोहयाणं उत्तरिल्ले चरिमंते समयखचेय उपवातो, एवं चा उत्तरिलं चरिमंत समयखेत्तेय समोहयाणं दाहिनिल्ले चरिमंते समय खत्तय उपवातेपच , णेव गमएणं ॥ ५ ॥ अपजत्ता सुहुम पुढवी काइएणं ।
भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहएता जे भविए हो ? अहो गौतम ! पूर्वोक्त जो कहना. यो इसी क्रम से जैसे कि चरिमांत में मारणांतिक समुद्रात कर के पश्चिम के चरिमांत में तथा समय क्षेत्र में बादर तेउकायाने उत्पन्न होने का कहा वैसे ही पश्चिम के चरिमांत का कहना. पों पूर्वोक्त जो ४०० आलापक पश्चिम के चरिमांत का जानना. ऐसे ही दक्षिण के चरिमांर में मारणांतिकरू मुद्धात करके उत्तर के चारेमांत में उत्पन्न होने के ४०, आलापक कहना.. ही उत्तर के चरमांत के भी ४०० आलापक जानना. यों चारों दिशा के सब मीलकर १०० आलापक रत्नप्रभा नारकी आश्री कहना. ॥ ५ ॥ अब शर्करप्रभा आश्री कहते हैं. अहो भगवन ! इम शर्करप्रभा नरक के पृथ्वी काया के पूर्व के चरिमांत में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया मारणांतिक समुदातर
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. वातीसवा शतकका पहिला प्रदेशा
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