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सूत्र
भावार्थ
अनुवादक-पालप्रह्मचारी मुनि श्री अनेक ऋषिजी -
भेदेणं उवत्रातेयन्यो, जात्र पजत्ता बादर वणस्सइकाइयागं भंते । इमीले रयणप्पमाए पुढची पुरच्छिमिले चरित समोह समोहता जे भनिए इमीसे स्वणपभाए पञ्चच्छिपिल्ले चरिमंते पजता वादर वणस्स इकाइयत्ताए उवजित्तए, सेणं भंते ! क्रतिसमयणं ? सेसं तव जाब से तेणद्वेणं ॥ ४ ॥ अरजत्ता हुन पुढवीकाइएणं भंते ! इसे रणप्पा पुढचीए पञ्चच्छिमिले चरिमंते समोह समोहत्ता जे भत्रिए इमीसे स्यणप्पभाएं पुढवीए पुरच्छिमिले चरिमते अपजत्ता सुहन पुढवीका इयत्ताए उबव जित्तए, तेणं भंते ! कइ समएणं सेसं तहेव निरवसेसं, एवं जहेब पुरच्छिमिले
का राजा बहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी
{आलापक हुए यावत् अहो भगवन् ! इस रत्प्रभा के पूर्व के चरिमांत में पर्यंत वादर वएस्पतिकाया मारणांतिक समुद्धात कर के इस रक्तप्रभा के पश्चिन के चरिमांत में पर्याप्त वादर वनस्पति काया पन उत्पन्न होने योग्य होवे तो वह कितने समय में उत्पन्न होवे शेप व हा यावत्-इसलिये ऐसा कहा गया है। } ॥ ४ ॥ अव पश्चिम के चरिमांत के ४०० भांगे करते हैं. अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया इम { रत्नप्रभा पृथ्वी के पश्चिम के चरिमांत में मारणांतिक समुद्धात कर के इस रमभा पृथ्वी के पूर्व के चरिमांत अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी कायापने उत्पन्न होंने योग्य होवे तो वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न
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