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शब्दार्थ गो० गौतम स० श्रमण भ० भगवान् म० महावीर को वं० वंदनाकर न० नमस्कार कर व० बोले ५०
समर्थ भं० भगवन् खं० खंदक क. कात्यायन गोत्रीयदे धिशासी अं० पास मुं० मुंड भ० होकर 50 अ० अगारसे अ० अनगारको १० वाजत होनेको हं०हां प०प्रभु।। १.१॥जाजितना कालम श्रमण भ० भगवान् म. महावीर भ० भगराज गो. गौतम की पाय प. यह अर्थ प० करते. ता. उस वक्त में खं खंदक
भगवं गोयमे मन नगर्व महामाइ नभसइ २ . एवं बयासी पल ! खंदए कच्चायणसगोते देवाणुप्पियाणं आतए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणनारियं पव्वइत्तए ? हंता पभ ! ॥ ११ ॥ जावंचणं समणे भगवं महावीरे भगवओ
गोयमस्स एयमद्रं परिकहेइ तावंचणं खंदए कच्चायणसगोत्ते तं देसं हव्वमागए. तएभावार्थ | स्वामी महावीर भगवंत को वंदना नमस्कार करके ऐसा पूछने लगे की अहो भगवन् ! क्या कात्यायन भी
गोत्रीय स्कंदक परिव्राजक आपकी पास दीक्षा ग्रहण कर मुंड होने को ममर्थ है ? हां गौतम! वह खंदक परिव्राजक दीक्षा लेने को समर्थ है ॥ ११॥ श्री महावीर भगवन्त गौतम स्वामी को ऐसा कह रहे थे इतने में काखायन गोत्रीय स्कंदक परिव्राजक उस बगीचे के एक देश में आ पहुंचे. उस समय श्री गौतम स्वामी कात्यायन गोत्रीय स्कंदक मुनिको पास आये जानकर उपस्थित हुने उपस्थित होकर
* श्री गौतम स्वामी स्कंदक परिखाजक असंयतीको देखकर खडेहुवे जिसका कारन यह है कि वह आगे *संयती होवेगा व भगवंतका ज्ञान प्रगट करेगा.
विवाह पण्णात्त (भगवती ) सूत्र पंचमाङ्ग
रा शतक का पहिला उद्देशा
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