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पंचमांग विवाह षण्णनि (भगवती) सूत्र
लावणं एकारसवि उद्देसग्गा तहेव भाणियन्या जहा ओहियसए जाव अचरिमोचि ॥ छटुं एगिदिय सयं सम्मत्तं ॥ ३३ ॥ ६॥
॥ जहा कण्ह लेस्स भवसिद्धिएहि सयं भणियं एवं गीललेस्स भवसिद्धिएहिंवि सयं भाणियब्वं ॥ सत्तम एगिदिय सयं सम्मत्तं ॥ ३३ ॥ ७॥
एवं काउलेस्स भवसिद्धि एहिंवि सयं ॥ अठमं एगिदिय सयं सम्मत्तं ॥ ३३ ॥ ८॥ . कइविहाणं भंते ! अभवसिडिया एगिरिया प• ? गोयमा ! पंचविहा अभवसिद्धिया
एगिदिया प• तंजहा-पुढवीकाइया जाव कणस्सइकाइया ॥ एवं जहेव भवसिद्धियावन् वेदते हैं. यों इसी क्रम से अग्यारह देश औधिक जैसे अचरिम पर्यन्त कहनाः यों छठाई है एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हुदा ॥ ३३ ॥ ६॥. .
जैसे कृष्ण लश्या वाले भवसिद्धिक का शतक कहा वैसे ही नील लेण्या वाले भवसिद्धिक का शतक कहना. यो सातवा एकेन्द्रिय शतक संपूर्ण हुवा. ॥ ३३ ॥ ७॥ ॥ ऐसे ही कापुर सेश्या काले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय का शतक जानना. यों आठवा शतक संपूर्ण ॥ ३५ ॥ ८ ॥ । बहो मगवन् ! अभवसिदिक एकेन्दिप कितने को है ! बदो गौवम ! अमवसिदिक एकेन्द्रिय पांच
सत्तासयासतक का ७-८-९ उद्दशा
भावार्थ
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