SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3004
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९५ ओहिए उद्देसए तहेव जाव वेदेति ॥ ॥ काविहाणं भंते ! अणतरोववण्णगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिदिया पण्णचा ? गोयमा ! पंचविहा अणंतरोबवण्णगा जाव वणस्सइ काइया । अणंतरोव वण्णगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया पुढवीकाइयाणं भंते ! कइविहा पण्णता ? गोयमा ! दुविहा ५० तंजहा-सुहुम पुढत्रीकाइयाय, वादर पुढधीकाइयाय, एवं दुपओ भेदो ॥ अणंतरोववण्णगा, कण्हलेस्सा भवसिद्धिय मुहुम पुढवीकाइयाणं भंते ! कइकम्म पगडीओ ५० एवं एएणं अभिलावणं जहेव ओहिओ अणंतरोववण्णग उद्देसओ तहब जाव वेदेति ॥ २ ॥ एवं एएणं अभिभावार्थ कहा जैसे ही कहना. यावत् वेदते हैं ॥१॥ अहो भगवन् ! अनंतरोत्पन्न कृष्ण लेश्यावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने कहे हैं ! अहो गौतम ! पांच भेद कहे हैं. अनंतरोत्पन्न कृष्ण लेश्यावाले भवसिद्धिक पृथ्वीकाया यावत् वनस्पतिकाया. अहो भगवन् ! अनंतरानक कृष्ण लेश्यावाले भवसिदिक' पृथ्वीकाया के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! दो भेद कहे हैं. सूक्ष्म पृथ्वीकाया व. बादर पृथ्वीकाया. यों दो पद कहना. यों यावत् अनंतरोत्पन्नक कृष्ण लेश्याबाले भामिद्धिक. सूक्ष्म पृथ्वीकाया को कितनी 1कर्म प्रकृतियों कही ? अहो गौतम ! उक्त अभिलाप से जैसे औधिक अनंतरोत्पत्र उद्देशा का वैसे ही 4 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी पकाधक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy