________________
+8+ पंचमाङ्ग विवाह पण्णति (भगवती) सुत्र ++
सहम पढवी काइयाणं भंते ! कइकम्मप्पगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविह बंधगावि अविह बंधगावि ॥ सत्तबंधमाणा आउवजाओ सत्तकम्मपगडीओ बंधति, अट्रबंधमाणा पडिपुण्णाओ अट्टकम्मपगडीओ बंधति ॥ पजत्त सहुम पुढवीकाइयाणं
ते ! कइकरपाडी एवं चेय, एवं सब्वे जाव पज्जतवादर वणस्सइकाइयाणं भंते ! कइकम्मपगडीओ बंधति, एवं चम ॥ ३ ॥ अपजत्तमुहुम पुढवीकाइयाणं भंते ! कइकम्मपगडीओ वेदति ? गोयमा ! चउद्दसकम्मपगडीओ वेदेति, तंजहा-णाणा वरणिज जाय अंतराइभ ; सोइंदियवाझं, चविखदियवझं, घणिदियवझं, जिमिंदियआठ २ ही कर्म प्रकृति कहना. ॥२॥ अझो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया कितनी प्रकृतियों का बंध है, करे ? अहो गौतम ! सात अथवा आठ कर्म पतियों का बंच करे, मात का बंध आयुष्य कर्म वर्जन कर और आठ प्रतिपूर्ण आठ है। को बध बांधे. पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया कितने कर्म प्रकृतियों का बंध करे वैसे ही कहना.।।३।। अहो भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काया कितनी कर्य प्रकृतियों वेदे ? अहो गौतम ! चौदह प्रकृतियों चंदे.जनावाणा यावत् अंतराय, श्रोत्रेन्द्रिय वध्ये, चक्षुइन्द्रिय वध्य, घाणेन्द्रिय वध
१. वा उसे कहते हैं कि नो जिन के नहीं हैं. श्रोतेन्द्रिय मतिज्ञान को वद्य से चाइन्द्रिय चक्षुदर्शन के वद्य से. T१ घनेन्द्रिय. अचक्षुदर्शन के वध से यो सब आनना. स्पर्शेन्द्रिय नपुंसक वेद वगेरा एकेद्रिय में हैं. इस से नहीं कड़े ।
तेत्तीसरा शतक का पहिला उद्देशा 498
भावार्थ
-