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बझं, इत्थिवेदवझं, पुरिसवेदवझं ; एवं चउक्कएणं भेदेणं जाव पजत्तवादर वणरसइ काइयाणं भंते ! कइ कम्मप्पगडीओ वेदेति ? गोयमा ! एवं चेव चउद्दस कम्म पगडीओ वेदोत ॥ सेवं भंते. भंतेति ॥ तेतीसइम. सयस्स पढमो उद्देसो॥ ३३ ॥ १.।। कइविहाणं भंते ! अगंतरोवत्रण्णगा एगिदिया प० ? गोयमा ! पंचविहा' अणंतरोववण्णगा, एगिदिया पतंजहा-पुढवीकाइया जाव वणस्सइकाइया । अणंतरोववण्णगाणं भंते ! पुढवीकाइया कइविहा प०? गोयमा ! दुविहा प० तं• सुहुम पुढवीकाइयाय,
बादावर पुढवीकाइयाए ; पवरं दुपदेसिएणं भेदेणं जाव वणस्सइकाइया ॥ अणंत मावार्थ जिव्हन्द्रिय वध्य, स्त्री वेद वध्य और पुरुष वेद वध्य यों एक २ के चार भेद कहना. यावत् पर्याप्त
बादर वनस्पतिकाया कितनी कर्म प्रकृतियों वंदे. अहो गौतम ! वैसे ही चौदह कर्म प्रकृतियों वंदे. अहो भगवन् ! आपके वचन मत्य यो तेत्तीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३३ ॥१॥ १. अहो भगवन् ! अनंतरोत्पन्न एकेन्द्रिय के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! अनंतरोत्पत्रक एकेकन्टिय के पांच भेद कहे हैं. पृथ्वीकाया यावत् वनस्पतिकाया. अहो भगवन् ! अनंतरोत्पत्र पृथ्वीकाया के
कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! अनंतरोत्पन्नक पृथ्वीकाया के दो भेद कहे हैं जिन के नाम. मूक्ष्म
49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अयोलक ऋषी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लामा सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *