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पंचमाङ्ग विगह पणत्ति (भगवति ) सूत्र
॥त्रयात्रिंशतम शतकम् ॥ कइविहाणं भंते ! एगिदिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा एगिंदिया पण्णत्ता तंजहा पुढवी काइया जाव वण्णसइ काइया, पुढवि काइयाणं भंते ! कइविहे ५० गोयमा! दुविहा पणत्ता तंजहा सुहुम पुढवि काइयाय, बादर पुढवि काइयाए ॥ १ ॥ सुहुम पुढवि काइयाणं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? गोयमा दुविहा प० तंजहा-पजत्त सुहम पुढवि काइया, अपज्जत्त सुहुम पुढवि काइया ॥ वादर पुढवि काइयाणं भंते ! कइ. बिहा पणत्ता ? एवं चेव ॥ एवं आउ काइयावि एवं चउक्कएणं भेदेणं भाणियन्वा
बत्तीसवे शतक में उद्वर्तन कहा. उपपात व उद्वर्तन एकेन्द्रिय में होता है इसलिये एकेन्द्रिय का कथन करते. अहो भगवन् ! एकेन्द्रिय के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! एकेन्द्रिय के पांच भेद कहे हैं. पृथ्वीकाया यावत् वनस्पतिकाया. अहो भगवन् ! पृथ्वीकाया के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! पृथ्वीकाया के दो भेद कहे हैं. सूक्ष्म पृथ्वीकाया व वादर पृथ्वीकाया. अहो भगवन् ! मूक्ष्म पृथ्वीकाया के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम ! सूक्ष्म पृथ्वीकाया के दो भेद कहे हैं. १ पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया व अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाया. अहो भगवन् ! बादर पृथ्वीकाया के कितने भेद कहे हैं ? अहो गौतम है "
तेत्तीसवा शतक का पहिला उद्देशा
भावार्थ
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