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41 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी १
रयणप्पभाएंवि, एवं जाव अहे सत्तमाएवि ॥ एवं खंडाग तेओगे, खड्डागदावरजुम्मे खुडाग कलिओगे, णवरं परिमाणं जाणियव्वं, सेसं तंत्र ॥ सेवं भंते ! भंतेति ॥ बत्तीसमस्स सयस्स पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ३२ ॥ १ ॥ कण्हलेस्स कडजुम्मे गेरइया, एवं एएणं कमेणं जहेत्र उववाए सए अट्ठावीसं उद्देसगा भणिया तहेव उवट्टणसएवि अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियव्वा णिरवसेसा, णवरं उज्वटंत्तित्ति अभिलावो भाणियन्यो ॥ सेसं संचव ॥ सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ जाव विहरइ ॥ उवट्टणा सयं सम्मत्तं ॥ ३२ ॥ वतीसमं सयं सम्मत्तं ॥ ३२ ॥ x
परिमाण भिन्न २ जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य है. यह बत्तीसरा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ ३२ ॥ १ ॥ . जैसे उपपात शतक में अट्ठाइस उद्देशे कहे. वैसे ही इसी क्रम से उद्वर्तना शतक में भी अट्ठाइस उद्देशे कहना. यहां पर उपपात के स्थान उद्वर्तना कहना. शेष सब पूर्वोक्त जैसे, अहोभगवर! आपके वचन सत्य हैं. यों कहकर यावद विचरने लगे. यह उद्वर्तना शतक संपूर्ण दवा ।। ३२
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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