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शब्दार्थ में लेकर छ० छत्र वा० पगरखा सं० युक्त पा० धातुरक्त व वस्त्र प० पहनकर सा० सावत्थी न. नग
की म० मध्य से नि• निकलकर जे. जहां क० कयंगला न० नगरी जे. जहां छ० छत्रपलास चे० चैत्य
जे. जहां स० श्रमण भ. भगवान् म. महावीर ते. तहां पा निश्चय किया गजाने को ॥ ९॥ गो010 #गौतमादि स० श्रमण भ• भगवान् म० महावीर भ० भगवान् गो० गौतम को एक ऐसा व० वोले द०११
है छत्तोवाहण संजुत्ते, धाउरत्त वत्थ परिहिए, सावत्थीए नयरीए मझं मझेणं निग्गच्छइ । है निग्गच्छइत्ता जेणेव कयंगला नगरी, जेणेव छत्तपलासए चेइए, जेणेव समणे भगवं
महावीरे तेणेव पाहारेच्छ गमणाए॥९॥ गोयमाइ समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं
वयासी दच्छिसिणं गोयमा पुव्वसंगइयोकं तं, कं भंते? खंदयं नाम । से काहेवा, किनीकलकर त्रिदंड, कमंडल, रुद्राक्षमाला, मृत्तिका का भाजन, मृत्तिका आसन विशेष, प्रमार्जन करने का कपडा, षड्नालिका, वृक्ष पल्लव को छेदनेवाला अंकुश, ताम्बेकी मुद्रिका व कालाचिका इत्यादि हस्त में धारन करके, शिरपर छत्र रखकर, पांव में उपानह रखकर, भगने वस्त्र पहिन कर, सावत्थी नगरी के ईमध्य में से नीकलकर जहां कयंगला नामक नगरी के छत्र पलाश उद्यान में श्रमण भगवन्त महावीर स्वा थे वहां आनेका अभिलाषी हुवा ॥ ९ ॥ उस समय श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने गौतम स्वामी को बोलाकर कहा कि अहो गौतम ! तूं तेरा पू संगतिबाला भित्र को देखेगा. तब गौतम स्वामी बोले की ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 40888
88588% दूसरा शतकका पहिला उद्देशा8488
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