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शब्दार्थ
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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र -*8808
आत्मविषय चि. स्मरणरूप प० प्रार्थनारूप म० मनोगत सं० संकल्प स० उत्पन्न हुवा ए. ऐन श्रमण अ. भगवन् म० महावीर क० कयंगला न० नगरी की ब० शहिर छ. छत्रपलास चे० चैत्य में सं० संप से त० तप से अ० आत्मा को भा० भावते वि० विचरते हैं तं. उनकीपास गं० जाऊं स० श्रण भ भगवान् म महावीर को पं० वंदनाकर न० नमस्कारकर स० सत्कारकर म० सन्मानदेकर
वीरे कयंगलाए नयरीए बहिया छत्चपलासए चेइए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ॥ तं गच्छामिणं समणं भगवं महावीरं वदामि नमसामि सेयं खलु । मे समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता सकारेत्ता सम्माणेत्ता कल्लाणं मंगलं देव
यं चेइयं पज्जुवासेत्ता इमाइंचणं एयारूवाइं अट्ठाई हेऊइं पसिणाई वागरणाइं पुकात्यायन गोत्रीय स्कंदक परिव्राजक को ऐसा चिन्तवन व मनोगत संकल्प हुवा कि कयंगला नगरी के छन. पलाश उद्यान में संयम व तप से आत्मा को भावते हुवे श्री श्रमण भगवंत महावीर विचरते हैं इसलिये उन की समीप मैं जाऊं और श्री श्रमण भगवन्त को वंदना नमस्कार करूं. श्री श्रमण भगवन्त महावीर
को वंदना, नमस्कार, सत्कार व सन्मान कर वैसे ही कल्याणकारी, मंगलकारी, देव व साक्षात् महाशानके। *धारक ऐसे श्री श्रमण भगवंत की पर्युपासना करके जो मेरे मन में संदेह रहा डुवा है वैसे प्रश्नों पुछकर
निर्णय करना मुझे श्रेय है. ऐसा विचार करके जहां परित्राजक संन्यासीओं का आश्रम था वहां आया वहां
दूसरा शतकका पहिला उद्देशा89382