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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र
कण्हलेस्सा॥ एवं णीललेस्सावि, काउलेस्साधि ॥ तेउलेरसा जहा सलेस्सा, णवरं अकिरियावादी अण्णाणियवादी वेणइयवादी णो णेरदयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयपि पकरेंति, देवाउयंपि पकरेंति । एवं पम्हलेस्सावि । एवं सुक्कलेस्सावि भाणियव्वा ॥ कण्हपक्खिया समोसरणेहिं चउबिहंपि अ.उयं पकरेंति, ।। सुक्कपक्खिया जहा सलेस्सा ॥ सम्मदिठी जहा मणपज्जवणाणी तहेव वेमाणियाउयं परेंति, मिच्छट्ठिी जहा कण्ह पक्खिया, सम्ममिच्छादिट्ठीणं
एकंपि आउयं पकरति जहेव णेरइया ॥ णाणी जाव आहिणाणी जहा सम्महिट्ठी। होते हैं जैसे कृष्ण लेश्या का कहा वैसे ही नील लेण्या व कापोन लेश्या का जानना. तेजा लेश्या का मलेश्या जैसे कहना. परंतु अक्रियावादी, अज्ञानवादी व विनयरादी नारकी का आयुष्य करे. ऐसे ही एन लेश्याका जानना. और ऐसे ही शुक्र लेख्याका कहना. कृष्ण पक्षिक चारों गति का आयुष्य बांधते हैं. शुक्ल पक्षिक का सलेशी जने कहा. समदृष्ट का मनःपर्याज्ञानी जैसे वैमानिक का आयष्य वांधे. मिथ्यादृष्टि का कृष्ण पक्षिा जैसे कहना. सममिथ्या दृष्टि नारकी जैसे एक भी आयुष्य करे नहीं. ज्ञानी यावन् । अवधि ज्ञानी का समदृष्टि जैसे कहना. अज्ञानी यावत् विभंग ज्ञानी का कृष्ण पक्षिक जैसे कहना, और शेर
48807 तीसवा शतक का पहिला उद्देशा -
मात्र