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सूत्र
भावार्थ
० अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिणी +
आयं परैति ॥ किरियावादीण भंते! पंचिदिय तिरिक्खजोणिया किं णेरइयाउयं पकरेंति पुच्छा ? गोयमा ! जहा मणपजवणाणी, अकिरियवादी अण्णाणियवादी वेणइयवादी चव्विपि परैति ॥ जहा ओहिया तहा सलेस्सावि || कण्हलेस्साणं भंते ! किरिया बादी पचिदिय तिरिवख जोणिया किं णेरड्याउयं पुच्छा ? गांयमा ! णो णेरइयाउयं पकरेति णो तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेंति, णो मणुस्साउयं पकरेति णो देवाउयं पकरेति ॥ अकिरियावादी अण्णाणियवादी वेणइयवादी चउब्विपि पकरोति, जहा
पत्र ज्ञानी
सम्यक्त्व में एक भी आयुष्य करे नहीं, क्योंकि अपर्याप्त अवस्था में ज्ञान होता है. क्रियावादी तिच पंचेन्द्रिय क्या नारकी का आयुष्य करे वगैरह पृच्छा, असे गौतम ! {जैसे कहना. अक्रियावादी, अज्ञानवादी व विनयवादी चारों प्रकार के आयुष्य करते हैं. [ कहा वैसे ही सलेशी का कहना. कृष्ण लेशीं तिर्येच पंचेन्द्रिय क्रियावादी क्या नारकी का वगैरह पृच्छा ? अहो गौतम ! नरक, तिच मनुष्य व देव इन में से एक ही का भी आयुष्य बांधे नहीं. समष्टि क्रियावादी होते हैं और समहा वैमानिक में उत्पन्न होते हैं. जहां तीन ही लेश्या होती है। जिल से एक भी आयुष्य का बंक करे नहीं, अक्रियावादी, अज्ञानवादी व विनयवादी चारों में उत्पन्न
जैसे औधिक आयुष्य बांधे
अहो मगवन् !
प्रकाशक- राजवहादुरला मुदेवमहायजी आलाप्रसादजी *
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