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मांग विवाहपण्णत्ति ('भगवती) मत्र
णो देवाउय पकरेइ ॥ एवं अण्णाणियवादीवि । सलेस्साणं भंते ! एवं जं जं पर्दै अस्थि पुढी काइयाणं तहिं तहिं मज्झिमेसु दोसु समोसरणेसु एवं चैव दुविहं आउयं षकरोति, णवरं तेउलेस्साए किं पि पकरेंति ॥ एवं आउकाइयाणवि ॥ एवं वणस्सइ काइयाणवि। तेउकाइया बाउकाइया सबट्ठाणेसु मज्झिमेनु दोसु समोर रणेसु णो णेरइयाउयं पकरेइ, तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेइ, णो मणुस्साउयं पकरेई, नो देवाउयं पकरेइ,
घेइंदिय तेइंदिय घउरिंदियाणं जहा पुढीकाइयाणं णवरं सम्मत्ते णाणेसु णएकापि कहा वैसे ही स्तनित कुमार पर्यंत कहेना. अक्रियावादी पूचीकाया की पृच्छा ? अहो गौतम ! नारकी का आयुष्य करे नहीं, निर्यचक व मनुष्यका आयष्य को परंतु देवका अयुष्य भी करे नहीं ऐसे ही अज्ञानवादीका कहना. सलेशी अक्रियावादी पृथ्वीकायाका ऐसे ही कहना. जहाँ २ पृथ्वीकायाका पद हावे वहां २१ बीच के दो समोसरण में तिर्यंच व मनुष्य एसे दो आयुष्य करे. परंतु तेजोले.झ्या में किसीका भी आयुष्य करे नहीं, क्यों कि अपर्याप्त अवस्था में तनोलेश्या होती है. ऐसे ही अप्काय का यावत् वनस्पति काया का जानना. तेउ, वायु के बीच के दोनों समोसरण में नारकी, मनुष्य व देव का आयुष्य करे नहीं परंतु एक तिर्यंच का आयुष्य करे. बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय व चतुरेन्द्रिय में ऐसे ही कहना. परंतु ज्ञान व
38 सांसवाशतक का पहला उद्देशा
भावार्थ
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