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. ' अण्णाणी जाव विभंगणाणीजहा कण्ह पक्खिया सेसा जाव अगोगारोवउत्ता, सर्व जहा स.
लेस्सातहाचेव भाणियव्वा । जहापंचिंदिय तिरिक्ख जोणियाणं वत्तब्यया भणिया एवं मणु. स्साणवि भत्तवया भाणियव्वा णवरं मणपजवणाणी णो सण्णावउत्ताय जहा सम्मट्ठिी तिरिक्ख जोणिया तेहेव भाणियन्वा । अलस्मे,केवलणाणी, अवेदक, अकसाइ, अजोगीय एए एकपि आउयं णपकरेंति,जहा ओहिया जीवा सेसं तंचरावाणमंतर जोइसिय वेमाणिया जहा असुर कुमारा ॥४॥ किरिया बादीणं भंते! जीवा किं भवसिाहया अभवसिद्धिया?
गोयमा ! भवसिद्धिया णो अभवसिद्धिया ॥ अकिरिया वादीपां भंते ! जीवा किं अनाकारोपयोग पर्यंत सलेशी जैसे कहना, जैसे निर्यच पंचेन्द्रिय की वक्तव्यना कही वैसे ही मनुष्य की वक्तव्यता कहना. परंतु मनःपर्यव ज्ञानी, व नो संज्ञपयुक्त का सपष्टि तिर्यच जैसे कहना. अलेशी, केवल ज्ञानी, अवेदी, मकपायी और अयोगी इन में से कोई भी एक भी आयुष्य का बंध नहीं करते। हैं. वाणक्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का असरकपार जैसे कटना. ॥४॥ अहो भगवन ! क्रिया
जीव क्या भवसिद्धिक हैं या अभवसिद्धिक हैं ? अहो गौतम ! भवसिद्धिक हैं परंतु अभवमिद्धिक नहीं हैं. 12 अहो भगवन् ! अक्रियावादी क्या भवसिद्धिक या अभवसिद्धिक हैं ? अहो गौतम ! भवसिद्धिक हैं
११ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
*प्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वाला प्रसादजी
भावार्थ