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________________ सूत्र भावार्थ 43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी चणा अत्थेगइयो त्रिसमाउंया विसमोत्रवण्णगा। तत्थणं जे ते समाउया समोववण्णमा, ते पावं कम्भं समायं पट्टर्विसु समायं णिट्ठर्विसु । तत्थणं जे ते समाउया विसमोत्र. वण्णा, तेणं पावं कम्मं समायं पटुर्विसु विसमायं णिट्ठत्रिमु । तत्थणं जे ते विसमाया समोवणगाणं पात्रं कम्मं विसमाषं पटुविसु समायं निट्ठविंसु । तत्थणं जे ते विसमाउया विसमोवयण्णमा, तेणं पावं कम्मं विसमायं पट्टर्विसु विसमायं णिर्विसु । से ते द्वेणं गोयमा ! तंत्र || सलेस्साणं भंते! जीवा पात्र कम्मं एवंचेव ॥ एवं सन्त्रासुव जाव अणागारोव उत्ताए, सच्चेवि पया एयाए वत्तव्वयाए भा * प्रकाशक राजवहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी कितने सम आयुष्यवाले व सरिखे उत्पन्न होनेवाले कितनेक सरिखे आयुव्यवाले व विषम उत्पन्न होने वाले, कितनेक विषम आयुष्यवाले सरिखे उत्पन्न होनेवाले और कितनेक विषम आयुष्णवले व विषम उत्पन्न होतेवाले होते हैं. अत्र जो समआयुष्यवाले व सम उत्पन्न होनेवाले हैं वे पापकर्म को ममकाल में वेदते के और समकाल में निर्जरते हैं. जोसम आयुष्य वाले व विषम उत्पन्न होने वाले हैं वे समकाल में वेदते हैं और विषम काल में निर्जरते हैं. जो विषम आयुष्य वाले व सम उत्पन्न होने विषय काल में वेदते हैं समकाल में निर्जरते हैं और जो विषम आयुष्य वाले व वाले हैं. वे पाप कर्म विषम उत्पन्न होने वाले वे विषम काल में पाप कर्म वेदते हैं और विषम काल में निर्जरते हैं. इस लिये अहो गौतम ! ऐसा कहा गया। २९३२
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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