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( भगवती ) सूत्र पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति
॥ एकोनत्रिंशत्तम शतकम् ॥ जीवाणं भंते ! पावं कम्मं किं समायं पटुविसु, समायं गिट्टविसु १, समायं पठविमु विसमयंणिटुविसु २, विसमायं पट्टविसु समायं णिटुबिसु ३, विसमायं पट्टविंसु विसमायं णि?विंसु४ ?गोयमा! अत्थेगइया समायं पटुविसु समायं णिविंसु, जाव अत्थेगइया विसमायं पट्टविंसु विसमायं णिविंगु ४ ॥से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-अत्थेगइया समायं पट्टविसु समायं तंचेव ?गोयमा! जीवा चउबिहा पण्णत्ता तंजहा अत्थेगइया समाउया समोववण्णगा, अत्थेगइया समाउया विसमोरवण्णगा, अत्थेगइया विसमाउया समोवअब उनतीसा शतक कहते हैं. अठावीस में शतक में कर्म समाणित का कहा गुमतीसवे शतक में कर्म और क्षय करने का कहते हैं. अहो भगवन् : बहुत जीवोंने पापकर्म समकाल में वेदने का आरंभ करके क्या समकाल में क्षय कीया ? समकाल में वेदने आरंभ का करके क्या विषय काल में क्षय है किया विषम काल में वेदने का आरंभ करके क्या समकाल में क्षय कीया, और विषम काल में वेदने का आरंभ करके क्या विषम कालमें क्षय कीया ? अहो गौतम ! कितनेकने समकाल में वेदनेका आरंभ करके समकाल में क्षयकीया, यावत् कितनेकने विषम कालमें वेदनेका आरंभ करके विषम कालमें क्षय किया. अहो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया है ? अहो गौतम ! जीव चार मकार के कहे हैं तद्यथा
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48 उनतीसवा शतक का पर
भावार्थ
उद्देशा 488