________________
-
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती पत्र 482
यव्या ॥ १ ॥णेरइयाणं भैते! पावं कम्मं किसमायं पट्टविस समायं गिट्रविस पृच्छा ? गोयमा ! अत्थेगइया समायं पटुविसु एवं जहेब जीवाणं तहेव भाणियवं जाव अगागारोवउत्ता ॥ एवं जाव वेमाणियाणं जस्स जं अत्थि सं एएणं कमणं भाणियन्वं, जहा पावेणं कम्मगं दंडओ, एवं एएणं कमेणं अट्ठसवि कम्मपगडीओ अटू दंगा भाणियन्वा, जीवादिया वेमाणियो पजवसाणा!|एसो गर दंडग संगहिओ, पढमो उद्देसओ भाणिययो । सेवं भंते ! भंतेत्तिं ॥ एगुप्पतीसइमं सयम्स
पढमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २९ ॥ १॥ हैं. अहो भगवान सलेशी जीवों पाप कर्म क्या समवेदते हैं समनिर्जते हैं वगैरह उत्पकार ही कहना. ऐसे ही सब स्थान में आना कारोपयोग तक सब पदमे वैसाही कहना.॥२॥ अहो भगवन! नास्की क्या पाप कर्म समकार वेदतेहैं व समकालमें निर्जरते हैं वगैरह पृच्छा ?अहो गौतम कितनेक समकालमें देदकर विसमकाल में निर्जरत हैं वगैरह जैसे समुच्चय जीवों की वक्तव्यता कही वैसे ही अनाकरोपयोग तक कहना. ऐमेही वैमानिक पर्यंत जिसको जो होचे वह उसको कहना, जैसे पापकर्म का दंडक कहा वैसे ही आठों कर्म प्रकृतियों के आठ दंडक जीवादि में वैमानिक पर्यंत कहना, यों नव दंडकवाला पहिला उद्देशा संपूर्ण हवा. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह गुन्नतीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २९ ॥ १॥
उनतीसवा शतक का पहिला उद्देशा
भावार्थ
mommmmmmmmwwwiminine
-
28t