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________________ शब्दार्थ | सूत्र भावार्थ 48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी क० कात्यायन गोत्रीय पिं पिंगलक नि०निग्रंथ वे० वैशालिक सा० सुननेवाला इ०यह अ० आक्षेप से पु० पूछते सं० संकित कं० कांक्षित वि० संदेह वाला भे० भेदको प्राप्त क० कालुष्य को स० प्राप्त णो० नहीं सं० शक्तिमान है पिं० पिंगलक निः निद्र्य वे वैशालिक सान्सुननेवाला किं० किंचित् प० उत्तर अ० कहने को तु० तुष्णीक सं० रहे ते ० तब से वह पिं० पिंगलक नि० निग्रंथ वे० वैशालिक सा०सुननेवाला खं० खंदक क० कात्यायन गोत्री को दो० दोवार इ० यह अ० आक्षेप से पु० पूछे मा० मागध किं० वडवा, हायइवा, एतावताव आइखाहि, बुच्चमाणो एवं तएणं से खंदए कच्चायणसगोत्ते, पिंगलएणं नियंठेणं वेसालीसावरणं इणमक्खेवं पुच्छिएसमाणे संकिए कंखिए, वितिििछए, भेदसमावण्णे, कलुससमावण्णे णो संचाएइ पिंगलयस्स नियंठस्स वेसालियसावयस्स किंचिवि पमोक्ख मक्खाइओ तुसिणीए संचिट्ठइ. यह लोक अंत सहित या अंत रहित है ? २ जीव अंत सहित है या अंत रहित है ? सिद्ध शिला अंत सहित है या अंत रहित है ? सिद्ध अंत सहित या अंत रहित है ? अथवा किस मरण से जीव संसार की ( वृद्धि करता है व किस मरण से जीव संसार को क्षीण करता है ? इन प्रश्नों का उत्तर कहो अनंतर दुसरे प्रश्न पूछूंगा. इस तरह महावीर स्वामी के वचन सुनने को रसिक पिंगलक निर्ग्रन्थने इस तरह प्रश्न पुछने पर कात्यायन गौत्रीय स्कंदक परिव्राजक को इस का क्या उत्तर होगा ऐसी शंका, अन्य की पास अर्थ * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ** २६४
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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